Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) २१९
२७. ।औरंगग़ेब दा ग़माना। कशमीरी पंडत॥
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दोहरा: तेग बहादर सतिगुरू,
बसि अनद पुरि मांहि।
समा बितावति सुख सहित,
दासनि श्रेय सु चाहि ॥१॥
चौपई: तुरकेशुर बहु गही कुचाली।
शरा चलावति जगत बिसाली।
हिंदुनि पर बहु बल को पायो।
चाहति सभ को धरमनसायो ॥२॥
सगरे नर मैण तुरक बनावौण।
बहुर शर्हा महि भले चलावौण।
शर्हा बिना दोग़क महि परैण।
नहि इमान को नीके धरैण ॥३॥
भयो मुहंमद पशचम देश।
तित तुरकाने ओज विशेश।
कित कित हिंदू रहै निजोर१।
तुरक करौण पूरब तिस ओर ॥४॥
अुत ते होवति आवति सारे।
इत ते पिखि हुइ शर्हा मझारे२।
संग मौलवी मसलत ठानी।
सभिनि सराहो नीक बखानी ॥५॥
लिखि परवाने पुनहि पठाए।
प्रथम पुरी कशमीर सिधाए।
सूबा तिहठां अफकन शेर३।
करति हुकम सोण सगरे ग़ेर४ ॥६॥
रंक देश धन हाकम लेति॥
दारिद सारी प्रजा निकेत५।
१कमग़ोर।
२वेख वेख के शर्हां विच हो जाणगे।
३शेर अफगन।
४अधीन।
५कंगालता है सारी परजा दे घरीण।