Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १०) २२०

३१. ।श्री रामराइ जी दी दैश॥
३०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १० अगला अंसू>>३२
दोहरा: अनुज हकारनि कारने,
चितवहि अनिक अुपाइ।
पिखहि कहिनि अवकाश को१,
जबहि शाहु ढिग जाइ ॥१॥
चौपई: इक दिन पुनहि प्रसंग चलायो।
श्री सतिगुर हरिराइसमायो।
बूझनि लगो शाहु सभि बात।
पिता तमारे जग बज़खात ॥२॥
किस प्रकार सो गए समाइ।
तुम नहि मिले तीर तिन जाइ।
किम नहि गए कि सुध नहि आई।
को कारन भा कहहु बुझाई ॥३॥
सकल समाज तिनहु ते पाछे।
किनहु संभारो राखो आछे।
किन लीनसि गुरता बर गादी?
तिन पाछे तिम कीनि अबादी ॥४॥
सुनि श्री रामराइ तबि कहो।
-अबि अवकाश कहनि कहु लहो-।
सुनहु शाहु! मुझ इतै पठायो।
पित आइसु ते मैण चलि आयो ॥५॥
अधिक समाज मोहि संगि भेजा।
हुइ प्रसंन भाखो -सभि लेजा-।
जबि के हम आए तुम पास।
भए सिज़ख बहु संगति रास ॥६॥
मिलनि आप के साथ घनेरा।
अग़मत पता पुनहि बहु हेरा।
यां ते भा समाज अधिकाई।
सिख संगति नित बधहि सवाई ॥७॥
देशनि महि सिज़खी बिसतारी।


१कहिं दा समां देखदा है।

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