Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७)२२०
२६. ।दरिआई घोड़े॥
२५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>२७
दोहरा: सुनि सतिगुर चित चौणप करि, हय चाहति जिम आइ१।
रिदे बिचारति भे बहुत, -किस प्रकार को लाइ? ॥१॥
चौपई: धन खरचहि जेतो मन भावति।
मोल दिए सो हाथ न आवति।
शाहुजहां के कमी न काई।
लेहि तुरंग सु कवन अुपाई* ॥२॥
अति प्रिय शाहु रखहि तकराई।
लाखहु भट नित रहति सहाई।
जे करि लरहि हाथ नहि आवति।
महां दुरग महि तिनहि रखावति = ॥३॥
सभा बिखै गुर बात चलाई।
हयनि प्रसंशा अधिक सुनाई।
किम देखनि मैण आइ हमारे?
सुमतिवंत सभि करहु बिचारे? ॥४॥
चितवहि जतन अनेक प्रकारी।
तबि इक सिख ने गिरा अुचारी।
महांराज! तुम सुमति निधाने।
अज़ग्र आप के कौन बखाने ॥५॥
तअू देखीयहि भले बिचारि।
होइ न बिन बिधीए निरधार।तुम सहाइता पाइ सु लावहि।
अपर अुपाइ नहीण किम आवहि ॥६॥
जिस बिधि की बुधि इस महि अहै।
सकल जगत नर दुसकर लहैण।
जिम तिन हयनि समान न होई।
तिम लावनि इस सम नहि कोई ॥७॥
तुम सम नहीण सहाइक दूवा।
तीनहु मेल एक सम हूवा।
१चाहुंदे हन जिवेण घोड़े आ जाण।
*होर इतिहासकाराण इह घोड़े सतिगुर लई आए होए हाकमां ने खोह लए दज़से हन।