Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) २२१
२६. ।करतार पुरोण कूच॥२५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>२७
दोहरा: बार बार बर बार को, बारद बरसति ब्रिंद१।
पिखति बहार अुदार को, नित श्री* हरिगोबिंद ॥१॥
चौपई: बर तरुवरु सरुवरु पर खरे२।
निरमल जल नवीन सोण भरे।
धरा तरावति जहि कहि पिखियति।
हरिआवल मुद दायक दिखियति ॥२॥
कुहकति कोकिलका अुपबन मैण३।
तड़िता४ दमकति बहु बिधि घन मैण।
मधुर मधुर अुपजति घनघोर।
ठौर ठौर मोरनि के शेर ॥३॥
इक दिन सतिगुर सभा सुहाए।
सिज़ख मसंद सुभट समुदाए।
जथा सुरनि महि इंद्र बिराजै।
दुति को देखि सुधरमा५ लाजै ॥४॥
गुरू बदन को सकल बिलोकैण।
चलनि अपर दिशि ते द्रिग रोकैण।
मुसकावति सभि की दिशि हेरैण।
क्रिपा कटाखनि ते नित प्रेरैण६ ॥५॥
चंद बदन ते सुधा समानी।
कबि कबि करति अुचारनि बानी।
कहति भए पावस७ रुति नीकी।
अबि सरिता तट हुइ रमनीकी८ ॥६॥
बहै प्रवाह बेग के संग।१वार वार बहुते बज़दल स्रेशट जल वरसाअुणदे हन।
*पा:-सु नित ही श्री गुर।
२सुहणे ब्रिज़छ सरोवर पर खड़े हन (जो)....।
३कोइलां बागां विच कूकदीआण हन।
४बिजली।
५देव सभा।
६पिआर करदे हन।
७बरसात।
८सुहावंी।