Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ५) २२४
२९. ।डरोली, भाई साईणदास-रामो॥
२८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ५ अगला अंसू>>३०
दोहरा: डज़ले ग्राम दमोदरी, मात पिता के धाम।
इक भगनी इस की बडी, रामोण तिस को नाम ॥१॥
चौपई: तिस को पति सिख सांई दास।
ग्राम डरोली वसहि अवास।
सतिसंगति बहु डज़ले ग्रामू।
मिलि मिलि सिमरति हैसतिनामू ॥२॥
साईणदास बसो ससुरारे।
नर गन हेरे गुरुमति धारे।
तिन की संगति ते मन ढरो।
श्री अरजन को सतिगुरु करो ॥३॥
सिज़खी गुन समेत अुर धारी।
शरधालू चित भगति अुदारी।
निज निकेत गमनो गुर भजै।
सिमरति सज़तिनाम नित जजै ॥४॥
इम सिख भा केतिक दिन पाछै।
भा सनबंध गुरू को आछै।
अति अनद तिस को मन होवा।
कई बार गुरु दरशन जोवा ॥५॥
पारो परम सिज़ख कुल जाणही।
रामो जनम लीनि तिस मांही।
परंपरा सिज़खी घर जाणहू।
यां ते गुरुमति धरि अुर मांहू ॥६॥
मात पिता, गुरु के सिज़ख भारे।
कोण संतति सिज़खी नहि धारे।
रामो सिमरि सतिगुरु नीति।
हित कज़लान प्रेम धरि चीत ॥७॥
दंपति महि गुरमति अति होई।
गुरु गुरु सिमरति दुरमति खोई।
होइ पुरब दिन दीपक माला।
किधोण विसाखी मेल बिसाला ॥८॥