Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ४) २२७
३०. ।श्री हरि गोबिंद जी प्रति अुपदेश॥
२९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ४ अगला अंसू>>३१
दोहरा: स्री अरजन बैठो गुरू,जानति सकल प्रसंग।
अहिदी ने दरशन करो,
भा सीतल सरबंग ॥१॥
चौपई: लिखो शाहु को धरो अगारी।
आप जोरि कर बंदन धारी।
देखि सरूप सुभाव बिसाला।
अहिदी कहि न सको तिस काला ॥२॥
सतिगुरु सो खुल्हाइ पठवायो१।
-धन दोइ लाख शाहु मंगवायो-।
श्री अरजन सगरी बिधि जानी।
तजनी कायां अपनि पछानी ॥३॥
अरु कान्हे को स्राप चितारा*।
-तजनि देह दुख पाइ अुचारा।
हरिगोबिंद गुरु बैठे भारी।
महांबली बड शसत्रन धारी ॥४॥
सो सभि बदला लेगु हमारा+।
भूत भविज़ख भले निरधारा।
-एक दिवस अहिदी को राखो।
भई प्रात ते सतिगुर भाखो ॥५॥
हम लहौर आपहि चलि जैहैण।
कहै शाहु जो तिह ठां दै हैण।
इस प्रकार कहि अहिदी तोरो।
बोलो सो निज हाथनि जोरो ॥६॥
जिम चंदू ने मोहि पठायो।
खोटे बाकनि को सिखरायो।
सो मुझ ते किम नहि बनि आवहि।
१अुह चिज़ठी पड़्हाई।
*देखो रासतीसरी अंसू ४६ अंक ३४ दी हेठली टूक।
+देखो इसे रास दे अंसू ३७ अंक २८ दी हेठली टूक।