Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) २३२
३१. ।भंगांी युज़ध फतह कीता॥
३०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>३२
दोहरा: भागो शाह पहार कौ, फतेशाह धरि त्रास।
मारे गए पठान गन, हरीचंद पुन नाश ॥१॥
मरेहग़ारोण बीर जिह, जीवत चले पलाइ१।
गिरपति संग सिधारि ले, गए तुरंग धवाइ ॥२॥
तोमर छंद: सरिता गिरी२ जिस नाइ।
तिस मैण गिरे बहु जाइ।
तर होइ पारहि कोइ।
बिच डूबि गे तिस जोइ ॥३॥
गिर पै चढे कित जाइ।
जहि राजपुरा३ बसाइ।
जमना नदी दिश होइ।
डर भाजिगे तरि४ कोइ ॥४॥
नहि आप मैण संभार।
रण ताग हैण बिकरार।
मरिगे पलावति कोइ५।
जल मैण डुबे डर होइ ॥५॥
पहुची तिनहु सुध धाम।
गुर पाइ कै संग्राम।
सर मारि कै हति प्रान।
रणखेत राखि निदान६ ॥६॥
सुनि शोक भा बिसतार।
द्रिग रोदती जल धार।
बहु पीटती तन नार।
सिर बार७ ब्रिंद अुखारि ॥७॥
१जो जीअुणदे सन अुह भज़ज गए।
२नाम है नदी दा जो भंगांी तोण अुपर जमना विज़च आ मिलदी है। इह जुज़ध जमना दे किनारे
होइआ है।
३इह अुह राजपुरा है जिज़थोण मसूरी दी चड़्हाई अज़ज कल चड़्हदे हन।
४तैर के।
५भजदे मर गए।६अंत ळ।
७सिर दे वाल।