Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) २३७
३१. ।अनदपुर छोड़ना॥
३०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>३२
दोहरा: सभिनि सुनो गुर बाक को, भए तार समुदाइ।
आयुध गन सिंघनि धरे, हुइ सवधान तदाइ ॥१॥
चौपई: अपने अपने बधि बधि भार।
शसत्र धरे, सिर लीनसि धारि१।
जिस को शकति अुठावन केरी।
सो तिन सीस धरी तिस बेरी ॥२॥
चार घटी जबि निसा गुग़ारी।
नीके भई सभिनि की तारी।
श्री मुख ते तबि हुकमबखाना।
करैण इकज़त्र बिहीर पिआना२ ॥३॥
सुनि आइसु को नर चलि परे।
दुरग वहिर निकसे दुख भरे।
पूरब दिश को मुख करि चले।
को अगै को पाछै मिले ॥४॥
पहिर निसा बीती जिस काला।
माता तार समाज संभाला।
इक खज़चर पर लादी मुहरैण।
इक दुइ दास चले करि मुहरै३ ॥५॥
लघु पौत्रे दोनहु ले साथ।
संदन चढहु कहो गुर नाथ।
प्रथम अपनि ते दुअू चढाए।
बहुत चढी माता सहिसाए ॥६॥
सतिगुर महिल सुंदरी मात।
अरु साहिब देवी चित शात।
नमो करी गुर कौ कर जोरे।
दोनहु तबि अरूढि करि डोरे ॥७॥
आइस पाइ निकसि करि चाली।
१(भार) मिट ते चा लए ते शसत्र ला लए।
२वहीर इकज़ठा होके तुरना करे।
३अज़गे।