Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) २३७
३३. ।कीरत पुर पहुंचे। बुज़ढं शाह॥
३२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८ अगला अंसू>>३४
दोहरा: झार मताबी बहु जरे, संग मसाल अनेक।
डोरे संदन संग कुछ, कीनसि जलधि बिबेक१ ॥१॥
चौपई: पिता सथान गंग सर जानि।
करि बंदन कीनसि प्रसथान।
आगे चलैण मसालैण ब्रिंद।
करो पान श्री हरिगोविंद ॥२॥
सने सने गमने मग जाणही।
बजहि नगारे बहु धुनि तांही।
सैन सकल को आइसु दीनि।
श्री गुरदिज़ते के संग कीनि ॥३॥
सभि कुटंब के संग रहीजै।
सावधान है कै गमनीजै।
कितिक सअूर संग निज लीने।
तजि मग बाम पयाना कीने२ ॥४॥
जाम जामनी भई बितीत।
प्रात हेरि सभि के मुद चीत।
अंतहिपुरि सोण३ चमूं बडेरी।
गमन करति रज अुठति घनेरी ॥५॥
सूधे पंथ चले सभि जाईण।
ग्राम नगर अुलघतिसमुदाई।
दिशा दाहिनी सतिगुर जाते।
करति जुज़ध की बहु बिधि बातेण ॥६॥
बिधीचंद ते आदि जि संग।
कहति भयो प्रभु दीरघ जंग।
जाम दिवस जबि ही चढि आयो।
छाया सहित कूप दरसायो ॥७॥
अुतरे हेरो रंम१ सथान।
१भाव गुरू जी ने।
२खज़बे पासे दा राह छज़ड के टुरे। भाव टज़बर ळ निखेड़ के खज़बे पासिओ तोरिआ ते आप सज़जे रसते
टुरे कि जो कोई मुज़ठ भेड़ होवे तां साडे नाल होवे। (देखो अंक ६)।
३महिलां नाल।