Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) २३८
२७. ।जहांगीर ने प्रिथीए ळ पिंड दिज़ता। कोठा बनाया॥२६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>२८
दोहरा: बहु बिचारि हग़रत करो, सिमरी पूरब बात।
सुनो हुतो किस पास ते, श्री गुर केर ब्रितांत ॥१॥
सैया छंद: -रामदास श्री सतिगुर पूरन
गादी पर लघु सुत बैठाइ।
आप समाइ गए सचखंड सु
बड सुत पर न प्रसंन रहाइ।
सेवा करी न, यां ते छूछो,
गुरता दई न सभि सुखदाइ-।
सो सिमरन करि जहांगीर अुर
बोलो सभि सोण दीनि सुनाइ ॥२॥
श्री नानक घर के हम सेवक
किम सामी को करि हैण नाइ।
श्री सतिगुर ही करहि निबेरनि
इही भावना रिदै बसाइ।
घटि घटि महि सभि अंतरिजामी,
सुनहि पुकार, न बिरथी जाइ।
श्री गुर रामदास ने आपहि
लखि लायक लघु सुत बैठाइ ॥३॥
तिन की करी न मेटहि हम किम१
जिम जीवति ही गए निबेर।गुरता अुचित तोहि को देखति
देति भले, न हुतो कुछ बैर।
करि संतोख नम्रि चित होवहु
अुचित तुमहु तिह२ लागहु पैर।
गुन महि बडो, बडो सो जानो,
लघु गुण महि तिह लघु ही हेर ॥४॥
गज दीरघ लघु शेर हेरीयति,
म्रिगपति नाम अधिक गुन जानि१।
१किवेण बी।
२भाव गुरू अरजन जी दे।