Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ११) २३९
३४. ।मूलोवाल दा माईआ ते गोणदा। शेखे दा तिलोका जिवंधा॥
३३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ११अगला अंसू>>३५
दोहरा: श्री गुर हरिगुबिंद के, नदन धीर क्रिपाल।
सहिज सुभाइक बिचरते, पहुचे मूलोवाल ॥१॥
चौपई: देखि ग्राम गुर* ठांढे रहे।
रुचिर अुचित थल तहि को लहे।
डेरा कीनि रीब निवाज।
अपर टिकायो सकल समाज ॥२॥
बीत गई घटिका जुग जबै।
मईआ गोणदा दोनहु तबै।
आनि बंदना कीनसि गुर को।
बैठि निकटि भाअु करि अुर को ॥३॥
श्री सतिगुर तिन साथ बखाना।
आनहु सुंदर जल हित पाना।
मारग सगरे श्रम को हरिबे।
हाथनि पांव पखारनि करिबे ॥४॥
सुनि गोणदे तबि बाक अुचारा।
इह जो कूप नीर बहु खारा।
कंकर बीच परे जु समूह।
ग्राम न लेवहि जल इस खूहु ॥५॥
हुकम आप को जे अबि होइ।
बाहर कूप दूर है सोइ।
तहां जाइ करि जल को लावैण।
लगहि बिलम पर आछो आवै ॥६॥
सगरो ग्राम तहां ते आनैण।
पीवति पानी दिन गुग़ारनैण।
कठन लाइबो सभि को अहै।
तअू लाइ नीको तिस लहैण ॥७॥
नीर कठनता लावनि केरी।श्री सतिगुरु सुनि कै तिस बेरी।
तिन पर करनि हेतु अुपकारा।
*पा:-कहु।