Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १०) २४०
३४. ।श्री गुरू हरिक्रिशन जी पास राजा जै सिंघ दा परधान पुज़जा॥
३३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १० अगला अंसू>>३५
दोहरा: जै पुरि पति परधान निज, पठो परो मग मांहि।
सने सने पुरि ग्राम लघि, सतिगुर मिलनि अुमाहि ॥१॥
चौपई: कीरति पुरि मैण पहुचोजाई।
करो सिवर जे नर समुदाई।
श्री सतिगुर ढिग जबि सुधि होई*।
भोजन पठो दे को जोई ॥२॥
अपर लई सुधि सरब प्रकार।
खान पान जेतिक बिवहार।
करी बितावनि सुख सोण राती।
सुपति अुठे जबि भई प्रभाती ॥३॥
सकल सौज जुति कीनि शनान।
पोशिश पहिरी रुचिर महान।
पुनहि पठो इक नर गुर पास।
कर जोरे भाखति अरदास ॥४॥
बड राजा जै सिंघ सवाई।
जै पुरि को पति बिदति महांई।
अवरंग शाहु निकटि नित रहिई।
अनिक नरन कारज निरबहिई ॥५॥
तिस न्रिप ने भेजो परधान।
निस आयहु कीरति पुरि थान।
सरब रीति की सुधि बहुतेरी।
गुर घर ते होई सभि हेरी ॥६॥
अबि रावर के दरशन हेतु।
बूझनि भेजो होइ सुचेत।
आइसु पाइ तुमारी जबै।
करहि सफलता अपनी तबै ॥७॥
सुनि श्री हरिक्रिशन सुजाना।
अंतरजामी कीनि बखाना।
पाछल पहिर दिवस के आवहु।
*पा:-सुधि जबि गई।