Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) २४०
३२. ।इनाम वंडे। पांवटे तोण तिआरी॥
३१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>३३
दोहरा: श्री सतिगुर तबि केसरी, अपर बंधि दसतारि।
जिगा बाणधि कली धरी, शोभा अुदति अुदार ॥१॥
निसानी छंद: लगो दिवान महान भट, बड होति अनदे।
साध क्रिपाल महंत तबि, आयो गुर बंदे।
सभा बिखै सनमान करि, प्रभु तांहि बिठायो।
साध साध श्री मुख कहो, साधू मुख पायो१ ॥२॥
बशिश हेतु बिचार करि, जग महि वडिआई।
अरध पारि२ दसतार को, दे सीस बंधाई।
कुलहा३ के अूपर बधी, दुति हुइ गई दूनी।
गान सज़चिदानद महि, ब्रितिटिकी चअूनी ॥३॥
तकमा४ इह तव पंथ को, जग सजै निराला।
दोनहु लोक सुधार दिय, गुर बखश बिसाला*।
नितप्रति देग कराहि की, दीजहि संग चेले।
कारदार पर गुर हुकम, होयो तिस बेले ॥४॥
दयाराम प्रोहत बली, कीनो रण भारी।
करति भए बशश तबै, तिस ओर निहारी।
ढाला बखशो आपनो, पुन पटा लिखायो।
इन पूजहि दरशन करै, पावहि मन भायो ॥५॥
तीनहु बैठे भानजे, दीनी बहु धीरा।
दोनहु भ्राता सुरग गे, जिह गति बड बीरा५।
सफल मरन छज़त्रीन को, रिपु मारति मरिबो।
कज़्रधति हुइ आगे चलनि, पग पाछ न धरिबो ॥६॥
नहीण सोचिबे जोग६ सो, निज धरम समेता।
१पाओगे।
२पाड़के।
३अुदासीआण दी टोपी चौकली जो विज़चोण अुज़ची हुंदी है। ।फा:, कुलह = टोपी, ताज॥।
४मरातबे दा चिंन्ह (पज़ग सहित टोपी।)
*देखो अुदासी किस तर्हां गुरू घर नाल मिले आ रहे हन। जो अुदासी आप ळ गुरू ग्रिह तोण दूर
दज़सदे हन अुह इतिहास विरुज़ध जा रहे हन। गुरू की मिहर हो रही है ते अुदासी वडका सेवा
विच सनमुख निभरिहा है, ते संप्रदा समेत अुसते बखशश कर रहे हन।
५जिन्हां दी गती बड़े सूरमिआण वाली होई।
६शोक करन योग।