Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरजग्रंथ (ऐन १) २४३
नांहि त पहुचैण तुरक विशेश।
सरब भांति ते दुख अुपजैहैण।
ओज पाइ करि हाला लैहै ॥३५॥
सुनि श्री मुख ते पुन मुसकाए।
कोण तुम अपनो भलो न भाए?
अविनी पुरि सिर्हंद की सारी।
इहां लगावन हेतु अुचारी ॥३६॥
भले पदारथ जो तहि हुते।
सगरे अुपजति सादल इते।
केचित दिन हुइ तुरक बिनासी।
राज खालसे को हुइ रासी ॥३७॥
मोठ बाजरी अंगीकारहु।
अपर न हुइ इस देश अुचारहु।
सवा जाम दिन चरि है जावद।
तुमरी मति थिर रहै न तावद ॥३८॥
बचन हटावनि रहे न माना।
तअू सुनहु इह देश महाना।
सने सने गोधुम हुइ जाइ*।
दिन प्रति बसति रहै अधिकाइ ॥३९॥
अपर काज तुम बहुत बिगारा।
मानोण बाक न जथा अुचारा।
नांहि त सकल वसतु इस देश।
अुपजति नित प्रति होति बिशेश ॥४०॥
डल सिंघ आदिक गन बैरार।*इह सारे वर हुण सफल हो रहे हन। इह पेशीनगोई कैसी पूरी होई है। गुरू जी इह संमत
१७६० ते १८६५ दे विचाले विचाले अुचार रहे हन। कवी जी इह वाक १८९० तोण १९००
संमत दे विचाले लिख रहे हन, १९०० विच कवी जी दा देहांत हो गिआ सी। रोपड़ तोण वज़डी
नहिर खुहली गई जिस दे पांी ने सारे मालवे ळ सरसबग़ कीता, जिथे हुण कंकाण कमाद सभ
कुछ हो रिहा है। इह नहिर सरकार अंग्रेग़ी ते मालवे दीआण रिआसतां ने रलके संन १८८२
अरथात संमत १९३९ विच बणाई सी। कवी जी ळ चड़्ह गिआण तदोण ३९ वर्हे हो गए सन। गुरू के
वाक अुचारन तोण अर कवी जी दे इस वाक ळ लिखं तोण बहुत अरसा बाद पेशीनगोई सज़ची होई।
इस तोण सिज़ध हो गिआ कि कवी जी ने नहिर वेखके, मालवा वसदा वेखके या सुणके इह साखी
नहीण लिखी, इह साखी पुरातन हैसी ते सही हैसी, कवी जी ने लिखी ते देखो कि गुरू के वाक समेण
सिर सभ सज़च होए।