Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (ऐन २) २४३
३०. ।पालक ळ माता जी ने तागणा। बेनवा मारना॥
२९ॴॴपिछला अंसू ततकरा ऐन दूजा अगला अंसू>>३१
दोहरा: मात सुंदरी बहु दुखी, थिरे न सदन मझार।
बसोण न दिज़ली पुरि बिखै, निशचे करो बिचार ॥१॥
चौपई: ले करि संग सकल दासीन।
केतिक सेवक को संग लीन।
छोरि सदन अपनो चलि आई।
जहां बसै संगति समुदाई ॥२॥
बहै बिलोचन ते बहु नीर।
पति को सिमरति भई अधीर।
सिज़खन को इकठे करिवायो।
अपन मनोरथ सभिनि बतायो ॥३॥
इक संदन करि दिहु मुझभारे।
अबि न बसौण मैण पुरी मझारे।
मरै कुमौत तरुन ही मूड़्ह।
दीने संकट मो कहु गूड़्ह ॥४॥
मुख अजीत सिंघ को न निहारौण।
नहि तिस को निज दरस दिखारौण।
अपर नगर महि अुठ करि जाअूण।
शेश आरबल तहां बिताअूण ॥५॥
सभि सिज़खन कर जोरि बखाना।
किम संगति पर कोप महाना।
भई अवज़गा देहु बताइ।
कर बंदहि हम लेण बखशाइ ॥६॥
कोण रिस करि दिज़ली को छोरि।
चाहति गमन अबै कित ओर।
सतिगुर की आगा तुम तांई।
बसहु सदा पुरि छोर न जाई ॥७॥
करी अवज़गा पुज़त्र तुमारे।
संगति तागहु कहां बिचारे?
अटको काज आप को करैण।
अपर बिघन हुइ तिस परिहरैण ॥८॥