Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ५) २४४
३२. ।पैणदे खां नौकर रज़खिआ। कज़रे पिंड पिंगला निहाल॥
३१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ५ अगला अंसू>>३३
दोहरा: सतिगुरु को रु देखि कै,
आए निकट पठान।
सनमख ठांढे है रहे,
बनि कै सकल समान१ ॥१॥
चौपई: श्री हरि गोविंद बूझनि ठानि।
नई बैस को है जु पठान।
किस को पुज़त्र नाम का अहै?
तुम ढिग बसहि कि अनतै रहै? ॥२॥
सुन इसमाइल खान२ बखाने।
गुरू गरीब निवाज महाने!
आलमपुरा गिलग़ीआ नाम।
पूरब हुतो तहां इस धाम ॥३॥
हुते नानके मीर वडे महि।
सुरति संभारी बडे होहि तहि।
मादर पिदर भिसत को गए३।
इस लघु को ही तागति भए ॥४॥
मम भगनी सुत लागति जाना।
ले पारो मुहि अपने खाना४।कुछक होश अबि करी संभारनि।
धरि करि अंग बिखै हथारन ॥५॥
दरस आप के आयहु संग।
करि चित चौणप बिलद अुमंग।
पैणदे खान नाम को कहैण।
अबि लौ हमरे ही घर रहै ॥६॥
सुनि श्री हरिगोविंद अुचारा।
अबि तौ होनि लगो हुशीआरा।
महां डील हुइ शसत्र धरैया।
१सारे इज़को जेहे हो के भाव कतार बंन्हके।
२इसमाईल ान।
३भाव मर गए।
४आपणे घर।