Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) २४७

रावर की रजाइ इमि जोई१।
करहि अपर२ ऐसो नहिण कोई ॥५८॥
दोहरा: इमि कहि छिमा कराइ करि,
बैठे श्री गुर पासि।
जंगल महिण मंगल महा,
जहिण गुर करो निवासि ॥५९॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम रासे जोगी तपे को प्रसंग
बरनन नाम तीन बिंसती अंसू ॥२३॥


१जो है।
२होर तर्हां, भाव अुलट; ऐसा कोई नहीण जो रग़ा आप दी दे अुलट टुरे।

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