Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) २४७

३१. ।सैफदीन पासोण विदा। अहिदीए भालं आए॥
३०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>३२
दोहरा: बसे चुमासा सतिगुरू,
डेरा कीनि मुकाम।
सैफदीन सेवा करहि,
नित प्रति आइ सलाम ॥१॥
चौपई: संगति गुर की ठानि हमेशू।
तोण तोण चित महि प्रेम विशेशू।
कबहूं ले निज संग सिधारहि।
सदन आपने जाइ बिठारहि ॥२॥
-परचे रहैण इहां चिरकाला-।यां ते ठानति जतन बिसाला।
अनिक भांति की बात सुनावै।
घर अंतर के बा१ दिखावै ॥३॥
बहुर फरश सुंदर डसवावै।
करि बिनती सनमान बिठावै।
चारू चौपर अज़ग्र बिछावै।
खेलै गुर सोण डलन रुड़ावै२ ॥४॥
इक दुइ जाम सदन महि राखै।
खेलनि हित पुन पुन मुख भाखै।
खान पान की सेवा करै।
सिवर बिखै बसतू सभि धरै ॥५॥
घ्रित मिशटान अंन गन नीके।
अपर अहार जि भावति जी के।
दुगध दधी ते आदिक जेई।
हिंदुनि ते पहुचावति तेई ॥६॥
चहियति वसतु सिवर महि जोइ।
निज बुधि ते भेजै तहि सोइ।
फल रसाल के३ सादल जेते।


१घर दे अंदर दे बाग।
२डल (पासे) रेड़ के।
३अंबाण दे।

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