Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) २४६
३३. ।अनद पुर दा सफर। नाहणेश। लाहा ते टोटा ग्राम दे चोर॥
३२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>३४
दोहरा: जुज़धजीत आए जबे,
टिके न तिन पुरि पाव। {विशेश टूक}
दीनसि कूच कराइ गुर,
तजो पांवटा थांव* ॥१॥
निशानी छंद: सैन सहित गुर थित करे, डेरा लदवायो।
सने सने सभि चलि परे, नीके लखि पायो।
भए प्रभू असवार तबि, रणजीत नगारा।
बाज अुठो बड बंब१ जुति, निज शबद पसारा ॥२॥
गिर गिर महि प्रति धुनि२ अुठी, कंपे गिरनाथा।
-गुरू छुटाइ न राज कौ३-, इम डर के साथा।
जित कित ते पठि नरनि को, सुधि सभिनि मंगाई।
-आनदपुर को कूच करि, गमने गोसाईण- ॥३॥
सुपते सुख की नीणद४ सभि, नतु डरहि बिसाला।
चढे पांवटे नगर ते, इस रीति क्रिपाला।
अुठी धूल नभ महि अुडी, ढांपो रवि जाई।
छुटे तड़ाके तुपक के, बड शबद अुठाई ॥४॥
कूदत जाति तुरंग गन, करि बेग पलावैण।
पौर परहि५ दिढ ठौर महि, नादति६ मग जावैण।
भए सिज़ख घाइल सुभट, से चलहि अुठाए।
ग्रामनि के नर ब्रिंद ही, सिर धरि गमनाए ॥५॥
खान पान कीसुधि सकल, भाखी७ बहु लीजै।
*रुत १ अंसू ४७ अंक ४२ विच असीण दज़स आए हां कि अनद पुर तोण टुरके जिथे पाअुण टिकाए
अुस दा नाअुण पाअुणटा धरिआ। इह थां लग पग १७४२ बि: विच गुरू जी ने बज़धा सी।
+गुरू जी ने कदे किसे पर धरम विरुज़ध ग़ोर नहीण पाइआ, जैसे कि दौलत राए इक समाजी
मुअज़रख ने आपणी किताब दे सफा २२१-२२ ते लिखिआ है।
१अवाग़।
२मुड़वीण धुनि, गूंज।
३किते खोह ना लैं राज ळ।
४(राजे) सुख दी नीणद सुज़ते।
५कदम (घोड़िआण दे)।
६शबद करदे।
७गुरू जी ने कहिआ।