Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) २४७
३४. ।औरंगग़ेब दी सतिगुराण ळ चिज़ठी॥
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दोहरा: मिलि सूबे अुमराव जे,
बहुर मुलाने ब्रिंद।
नौरंग को समुझावहीण,
गुर दिशि द्रोहि बिलद ॥१॥
चौपई: दारशकोह सहाइक भए।
मिले परसपर प्रीती किए।
जिम भ्राता भा शज़त्र हमारो।
तथा गुर हरिराइ बिचारो ॥२॥
सुनि औरंग अुर बिखै रिसायो।
मकर फरेबनि को१ लिखवायो।
केतिक अुपालभ इस भाए।
घर श्री नानक फकर सदाए ॥३॥
सभि को देखैण एक समाने।
मिज़त्र शज़त्र किसहूं नहि जाने।
दारा की तुम करी हिमाइत।सलतन दीनसि देश वलाइत ॥४॥
सो मैण पकरि दियो मरिवाइ।
कछून तुमारी भई सहाइ।
भई सु भई बीत सभि गई।
अबि मन करहु सफाई नई ॥५॥
हम सोण मिलहु आनि अबि आप।
सथिर तखत पर सहित प्रताप।
मिलिबे की बहु मुझ को लालस।
तुम भी आवहु करहु न आलस ॥६॥
लिखो शौकनामा इस रीति।
अति मतिमंद कपट धरि चीत।
सने सने सतिगुर ढिग आयो।
पठि करि सगल प्रसंग सुनायो ॥७॥
श्री अंतरजामी सभि जानी।
१मकर ते फरेब (दी चिज़ठी)।