Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (ऐन २) २४९
३१. ।दिवानिआण दी पुकार। शाही सैनां दा अजीत सिंघ ळ फड़न जाणा॥
३०ॴॴपिछला अंसू ततकरा ऐन दूजा अगला अंसू>>३२
दोहरा: चारति छांगअुजार महि, बिचरति हुतो अयालि।
कूप गिरायो बेनवा, तिन देखो तिस काल ॥१॥
चौपई: पिखो बेनवा खोजन करैण।
धरति शोक अुर इत अुत फिरैण।
तोहि बतावौण कहति अयाली।
प्रान हान करि दीनसि काली ॥२॥
सिंघन ते मैण डरौण बडेरा।
नहीण बचाइ होइगो मेरा।
यां ते मै नहि करति बतावन।
संधा प्राति अचानक घावन१ ॥३॥
धीर बेनवे दई घनेरे।
हम सभि रहैण संग ही तेरे।
मारन देहि नहीण किस भांति।
रज़खा करति रहैण दिन राति ॥४॥
दियो दिलासा सरब प्रकार।
सो ले गमनोण बीच अुजार।
जिस थल मारि कूप महि डारा।
परो मरो तिह सभिनि निहारा ॥५॥
मिलि करि ब्रिंदनि तबहि निकारा।
लियो अुठाइ रौर बहु डारा।
पुरि महि नर मिलि गे समुदाइ।
देखति बोलति संग सिधाइ ॥६॥
पायो जाइ दुरग के पौर।
मिले हग़ारहु माचो रौर।
जितिक बेनवे पुरि महि तबै।
दौरि दौरि मिलि के तहि सबै ॥७॥
पातशाह ढिग करी पुकार।दियो बेनवा सिंघन मार।
नाअुण लेहिगे कै दर मरैण।
१शाम या सवेरे अचानक मैळ मार देणगे।