Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ५) २५२
३३. ।श्री नानक मते पुज़जे॥
३२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ५ अगला अंसू>>३४
दोहरा: भए तारि श्री सतिगुरू, गमने मारग जाइ।
शट कोस पर सरसुती, हेरी जल अलपाइ ॥१॥
चौपई: तहि शनान करि दे धन दान।
पुन आगै कीनिसि प्रसथानि।
चले जाहि कुछ सैना साथ।
करहि निवेस निसा महि नाथ ॥२॥
शामल जल जमना तबि आई।
करि शनान अुलघे अगवाई।
गड़्ह गंगा के पंथपधारे।
चले जाहि तूरनता धारे ॥३॥
सिख प्रेमी जहि कहि जिम बासा।
सुनहि गुरू आयहु इत आसा१।
निकटि निकटि जे ग्राम अनेक।
कहि लगि तिन कहु करहु बिबेक ॥४॥
केतिक मग महि मिलहि सु आइ।
अरपहि वसतुनि को समुदाइ।
केतिक जबि निवेस को करैण।
आनि अकोरन आगै धरैण ॥५॥
दुगध अधिक दधि आवहि डेरे।
जथा शकति धरि दरब अगेरे।
बंदन करि करि दरसहि, जावहि।
अपरनि के ढिग सुजसु अलावहि ॥६॥
इम गनमति पहुचे गड़्ह गंगा२।
पिखो प्रवाहु बिमल जल चंगा।
अुतरे सतिगुर कीनि शनान।
दीनो अधिक दिजनि कहु दान ॥७॥
पूरन गुरू नहीण तिन जाना।
जाचो नहीण भगति गुन गाना।
१तरफ।
२गड़ मुकतेसर पास गंगा दा प्रवाह।