Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) २५३

३२. ।समांे पठां दी गड़्ही विच रात रहे॥३१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>३३
दोहरा: कितिक सअूर१ नुरंग के, जहि कहि खोजति थान।
देश बिदेशनि ग्राम पुरि, बूझहि नामबखानु ॥१॥
चौपई: श्री गुर तेग बहादर हेरे?
सुने किधौण किस थल इस बेरे।
कित ते आवति कित को जाते।
करहु बतावनि तिन की बातेण ॥२॥
श्री गुर की माया बिरमाते।
पिखे सुने जिन से न मिलाते२।
आदि अनदपुरि दाबा देश।
माझे मांझ बिलोकि अशेश ॥३॥
गिर कहिलूर आदि बहु थानि।
बूझति बिचरति नाम बखानि।
श्री नानक मसनद३ बिसाला।
तिस पर इसथित जो इस काला ॥४॥
शाहु तलाश करति है तिस की।
बिचरति सुधि लैबे सभि दिश की।
जिस के दुरो होइ कबि आइ४।
सो अबि हम को देहु बताइ ॥५॥
नांहि त गुर जानोण जबि जाइ।
पातिशाहि तिस देहि सग़ाइ।
इज़तादिक कहि कहि पुरि ग्रामनि।
कहूं बिलोकति हिंदुनि धामन५ ॥६॥
संगति मैण बहु त्रास बखानैण।
गुरू बतावहु जहि तुम जानैण६।
माया ते मोहित मन होए।१असवार।
२जिन्हां ने दरशन कीता या सुणे सन ओह अुन्हां ळ ना मिले।
३गज़दी।
४कदे आ के लुके होण।
५हिंदूआण दे घराण ळ।
६जिथे जाणदे हो कि हन।

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