Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५) २५२

२७. ।सुखमनी ते जप महिमा॥
२६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>२८
दोहरा: *इक दिन गुर कहि सभा महि, श्री अरजन की रहित।
कलि१ महिमा सुखमनी बहु, जपुजी महिमां महित ॥१॥
जिन के सेवन ते मिटैण, बिघन कलुख समुदाइ।
नित पाठ+ चित प्रीत ते, अंत भली गत पाइ ॥२॥
सुनि करि तबि नदलाल इक, पंडत पिंडी लाल।
दोनहु बूझनि लगे शुभ, महिमा जथा बिसाल ॥३॥
श्री अरजन जी रची ए२, श्री नानक जपु कीना।
श्री मुख ते बरनहु अबै, जथा महातम पीन ॥४॥
चौपई: इतने बिखै नद सिंघ कहियो।
महाराज मैण अचरज लहियो।
बिच सराइ के इक सिख हेरा।
तिस महि प्रविशो प्रेत बडेरा ॥५॥
इतनो ई प्रसताव चलाए३।
कवीगुनी गन गुर ढिग आए।
पठनि सुननि को परचा जोइ।
जिन के संग करैण रस सोणइ४ ॥६॥
बिधीचंद, पंडत ब्रिजलाल।
खानचंद, अरु चंद निहाल।
मानदास बैरागी जेव।
सैनापति, पंडति सुखदेव ॥७॥
आलमशाह++, मदन गिर आयो।

*सौ साखी दी ८९वीण साखी चज़ली।
१कलजुग विच।
+पा:-पाठ कहि।
२भाव सुखमनी।
३इतना प्रसंग चल ही रिहा सी कि........।
४जिन्हां नाल गुरू जी मिलके रस नाल (चरचा) करदे हुंदे सन।
++शिव सिंघ सरोज ते हिंदी शबद सागर कोश ते हिंदी अज़खराण विच लिखे माधवानल काम कंदला
दे अंतले दोहे तोण बी सही हो गिआ है कि इह कवी दसम गुरू जी दे समेण होइआ है। ९९१ हि:
संमत इस दे दीबाचे विच दिता जोध कवी संसक्रित दे लेख दा संमत है। जोध ने रागमाला नहीण
दिज़ती। गुरदरबारी होण करके आलम ने रागमाला गुरू ग्रंथ साहिब जी तोण लै के आपणे तरजमे
विच दिती है। देखो स्री गुर ग्रंथ कोश दी अंतका पुना देखो पिछे रास ३ अंसू ४८ अंक ४१ दी
हेठली टूक।

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