Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २) २५५

३०.।भाई कलिआणा मंडी दे राजे पास पुज़जा॥
२९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि २ अगला अंसू>> ३१
दोहरा: रामदास गुर पिता को,
सिमरति बाक हमेश।
-श्री अंम्रित सर बनहि जिम,
होहि जि दरब विशेश- ॥१॥
चौपई: इक दिन बैठे सभा मझारी।
सभिनि सुनावति गिरा अुचारी।
सरब सिज़ख हुइ१ पर अुपकारी।
इस सम अपर न पुंन अुदारी ॥२॥
जे अुपकार करति नित रहैण।
तिनहु निरंतर आनणद लहैण।
अनिक रीति के पर अुपकार।
पुंनी करते जगति मझार ॥३॥
सभि ते अुज़तम कूप लगावनि।
प्रानी अनिक करहि सुख पावनि।
इस ते अुज़तम सिरजन ताला।
नर पसु पंछी सुख लहि जाला ॥४॥
इस ते अुज़तम तीरथ हेत।
चहु दिश ते सुपान करि देति।
करहि शनान दान तहि आइ।
तिस को फल बड आनद पाइ ॥५॥
तीरथ महि तीरथ गुर केरा।
महां महातम सभिनि अुचेरा।
गुरुनि बिखै श्री नानक गुरू।
बचन सिंघ अज़गानहि रुरू२ ॥६॥
तिन गादी पर पिता हमारे।
सुनहु बाक तिन जथाअुचारे।
चिरंकाल को तीरथ एही।
श्री पति आनि बास को लेही ॥७ ॥ {विशेश टूक}


१होण।
२हरन ।संस: रुरु: = काला हरन॥ जिन्हां दे बचन शेर हन अगान रूपी हरन ळ (मारन वासते)।

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