Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) २५५

३५. ।औरंगग़ेब दा दूत सतिगुरू जी पास आया॥
३४ॴॴपिछला अंसू ततकरारासि ९ अगला अंसू>>३६
दोहरा: सुनो सकल तिन को१* कहो,
नौरंग सहित प्रमाद२।
तिन की अकल सराहि कै,
रिदै महिद अहिलाद ॥१॥
चौपई: ततछिन लिखवाइव परवाना।
राम दास के तुम बड थाना।
मानहि जुग सगरे गुर लहैण।
-अग़मत धनी- लोक सभि कहैण ॥२॥
आवत रहे हमेश हमारे।
मिले बोलनोण* भली प्रकारे।
मिहरबानगी अबि भी करीअहि।
दरशन दिहु संसै सभि हरीअहि ॥३॥
मो कहु अग़मत आइ दिखावहु।
मग खुदाइ के बाक सुनावहु।
इज़तादिक लिखि करि परवाना।
बिनै सहित अरु निज बलनाना ॥४॥
दे करि दूत पठो ततकाला।
देर न करहु लाअु दरहाला३।
दिज़ली पुरि ते कीनि पयाना।
सतिगुर को घर जिस पुरि जाना ॥५॥
तूरन गमनो मारग सारा।
क्रम क्रम अुलघि गयो हित धारा।
रोपर पुरि ते चलि अगवाइ।
कीरतपुरि पहुचो तबि जाइ ॥६॥
तहां पहुचि तिन कीनसि डेरा।
श्री सतिगुर जहि करति बसेरा।


१भाव शरई काग़ीआदिकाण दा।
*पा:-सुनो शरीअत को।
२भ्रमचिती नाल।
*पा:-मिलबो को सद।
३छेती।

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