Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) २५९

२९. ।ब्राहमण सिज़ख होया। शहिर दे बाणीआण ने बेनती कीता॥
२८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>३०
दोहरा: सुनि करि बोलो बिज़प्र तबि, भाखा बानी एहि।
संसक्रित हम कहु रुचहि, पठहि सुनहि धरि नेहि ॥१॥
हाकल छंद: परमां१ करहि तिस केरा।
कज़लां सु देति अुचेरा।
सुर बानी जानहु सोई।
पठि बिज़दा ले सभि कोई२॥२॥
का भाखा ते हुइ जावै।
जिह लोक३ नहीण मन लावैण।
किम करि है शुभ गति एही?
जिस बिखै जगति नहि केही ॥३॥
सुनि बोले गुरू प्रबीना।
बिन भाखा संसक्रित* हीना४।
जगासू नहिन अुधारै।
किम भगत गान सिख५ धारै ॥४॥
जबि पठहु शलोक अुचारी६।
नहि समझै को नर नारी।
बिच भाखा अरथ बखाने।
तबि सभि अजान भी जाने ॥५॥
बिन भाखा सरो न कामू।
अुपदेश न भा अभिरामू।
कज़लान न सिख को कीना।
जिस बिना भई फल हीना ॥६॥
लखि मूल सु भाखा यां ते७।
जिह पठे सकल बरुसाते।

१भाव अुस ळ मंनदे हां।
२सभ कोई पड़्हके (ब्रहम) विदिआ प्रापत करदा है।
३भाव पंडित लोक।
*पा:-सहसक्रित।
४भाखा तोण बिनां संसक्रित हींी (मुहताज) है।५(दी) सिखिआ।
६जदोण पड़्हके (तुसीण) शलोक अुचारदे हो।
७यां ते भाखा ळ ही मूल जाणो।

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