Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) २५९
३१. ।जंग दी तिआरी॥
३०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>३२
दोहरा: कोस रुहेला जबि रहो ठांढे अबदुलखान।
करी संभारनि सैन की सैनापति बलवान ॥१॥
चौपई: लरनि जंग को बोणत बिचारा।
प्रिथक प्रिथक दल भाग सुधारा१।
जथेदार इक बैरम खान।
शसत्र धरनि महि सुभट महान ॥२॥
बिज़दा खड़ग प्रहारनि केरी।
पटे बाग़ की रीति बडेरी।
एक हग़ार संग दल कीना।
हज़थियारनि महि जो बल पीना ॥३॥दुतिय मुहंमद खान सुजाना।
बिज़दा बाननि बिखै महाना।
चांप कठोर ऐणचि जो मारति।
बहु शज़त्र आगे जिस हारति ॥४॥
जीते आगै जंग बिसाला।
बली अधिक अरु पिखहि कराला।
एक हग़ार सुभट दल दै कै।
सावधान हित लरिबे कै कै ॥५॥
त्रितिय खान बलवंड प्रचंड२।
परहि जुध तबि करहि घमंड३।
करि महि तोमर बंब लिआले।
एक हग़ार करो जिस नाले ॥६॥
चौथो अलीबखश बडि बीर।
तुपक चलावहि जो धरि धीर।
नफर४ तारि करि करि जिस देति।
छोरति जितिक शज़त्र हति लेति ॥७॥
चली तुपक जिस छूछ न जाइ।
१दल दे हिसे कीते सुवार के।
२बड़ा बलवान।
३घमसान करदा है।
४नौकर।