Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (ऐन २) २६१

करो देहुरा गुरू नवम को।
हुकम भयो जबि गुरू दसम को*।
सिख संगति बहु दरब लगायो।
अूचो मंडप चारु सुहायो ॥४२॥
तुरकेशुर की आइसु पाइ।
छीन बेनवे लीनि सु थाइ।
सो सभि ढाहि मसीत चिनाई।
अपनो दरब लाइ समुदाई ॥४३॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज गिं्रथे अुज़तर ऐने हठी सिंघ प्रसंग बरनन
नाम दोइ त्रिंसती अंसू ॥३२॥


*दज़खं जाण तोण पहिलां जदोण गुरू जी दिज़ली आए सन तां नावेण गुरू जी दे साके वाले थां देहुरा
साजं दा हुकम दिज़ता सी। देखो ऐन १ अंसू ४३ अंक ३० तोण ३४ ते फेर देहुरा बणन लई देखो
ऐन २ अंसू ३४ अंक ४१ तोण ४४।

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