Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ४०

बाण कुदंड प्रचंड धरे
गज सुंड मनो भुजदंड प्रमां।
मां निमांनि हांि अरी
गण बाण सदा जिन आयुध पां।पांिप हिंदुन गोबिंद सिंघ
गुरू बर बीर धरैण अति त्राण ॥१७॥
त्राण = रखा, ।संस: त्राण॥ ददू = देणदे हन, बखशदे हन।
निरबाण = माइआ ते अतीत अवसथा। मुकती। परम पद। परम अुज़च
आतम पद ।संस: निरवाण॥।
प्रचंड = त्रिज़खे। गज = हाथी। मनो-मानो।
भुज-बाणहां। दंड = दंड देण वालीआण। (अ) दंडे वरगीआण, भाव सिज़धीआण।
प्रमां = तुज़लता वालीआण वरगीआण। अरीगण = शज़त्रआण दे समूह।
बाण = सुभाव। आयुध पां = हथ विच शसत्र।
।संस: आयुध = शसत्र, पां-हज़थ॥
(अ) आ+युध+पां = विशेश करके युज़ध विवहार।
पांिप = पांपज़त, इज़ग़त। टेक, आसरा (अ) रज़खा करन वाले ।संस: पा
= रज़खा करनी॥। (ॲ) दसतगीर, हज़थ फड़न वाले
।संस: पांि = हज़थ+पा = फड़ना॥
त्राण-संजोअ। कवच। ।संस: त्राण-जो रज़खा करे॥
(अ) त्राण = बल ।लहिणदा पं: त्राण, पंजाबी तां। ॥
अरथ: अरथ चौथी तुक तोण टुरेगा:- स्री गोबिंद सिंघ जी गुरू हन, बड़े सूरबीर हन,
बड़ी संजोअ ळ धारन करन वाले, (ते) हिंदीआण दी इज़ग़त हन।
आपणे दासां दी (सदा) रज़खा करदे हन (अतेअुन्हां दे) भव बंधन तोड़के निरबाण
(दी दात) बखशदे हन;
धनुख ते त्रिज़खे बाण ळ धारन करन वाले हन, (दुशटां ळ) दंड देण वालीआण (अुन्हां
दीआण) भुजाण हाथी दी सुंड वरगीआण (बलवान) हन;
निमांिआण दा अुह मां हन, वैरीआण दे समूहां ळ हानी देण वाले हन; सुभाव जिन्हां
दा सदा शसत्र धारी रहिं दा है।
होर अरथ: ३. निमांिआण ळ आदर देणा ते शसत्र हज़थीण फड़के सज़त्रआण दा नाश
करना इह जिन्हां दा सदा तोण सुभाव है।
४. स्रेशट गुरू गोबिंद सिंघ जी बड़े सूरमेण, हिंदूआण दे दसतगीर बड़े बल ळ
धारन वाले हन।
कबिज़त: भीर परे धीर दे सथंभ जैसे महां बीर
रज़छक जनोण के मिले दुखद समाज के।
एक संग बिघन तरंगचै अुतंग अुठैण

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