Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) २६८
३४. ।गिलौरे ळ बखशीश। कर्रा ते खरक ग्राम॥
३३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगलाअंसू>>३५
दोहरा: बालिक प्रतिपालो हुतो,
अपनि गिलोरा जानि।
अुतरे तांहि निकेत महि,
शील क्रिपालु महान ॥१॥
चौपई: रुचिर प्रयंक डसावनि कीनि।
छादो आसतरन तल पीन१।
हाथ जोरि थिर बोलो सादर।
बैठे श्री गुर तेग बहादर ॥२॥
त्रिं दाने की सेव संभारि।
करिवाइसि बर बिबिध२ अहार।
सादल मधुर सनिगध खवायहु।
बहुर सकल सिज़खनि त्रिपतायहु ॥३॥
बसे निसा महि पौढनि कीनि।
सुपत जथा सुख गुरू प्रबीन।
रही जाम जागे सुच धारी।
मज़जन करो बिमल बर बारी ॥४॥
सज़चिदानद ब्रहम इक आहि३।
बैठे थित करि ब्रिति तिस मांहि।
दिनकर४ चढो, बिलोचन खोले।
मनहु कमल दल अली अडोले५ ॥५॥
इक बासुर तहि कीनि मुकामू।
मिलैण सिज़ख सुनि सुनि गुर नामू।
अनिक अकोर आनि कर जोरहि।
दरस बिलोकहि, चरन निहोरहि ॥६॥
ग़िमीदार गन ग्राम मझारा।
१हेठ बड़ा मोटा विछाअुणा विछाइआ।
२कई तर्हां दे।
३जो इकहै।
४सूरज।
५मानो कमल पज़ते अुज़पर भौरे अडोल हन (मुज़ख पर काले नेत्र)। (अ) मानोण कमल दल (खुल्हे हन ते
विच) भौरे अडोल होए (दिज़सदे हन)।