Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ५) २७४३६. ।डरोली॥
३५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ५ अगला अंसू>>३७
दोहरा: श्री गुरु हरि गोविंद जी, प्रथम पठो असवार।
ग्राम डरोली सुधि दई, सुनि हरखो परवार ॥१॥
चौपई: साईणदास दास ले ब्रिंद।
सुनि सनमाननि हेतु बिलद।
निकसि ग्राम ते वधो प्रमोद।
तूरनि गमनो सतिगुरु कोद१ ॥२॥
सुंदर मंदर बिखै प्रयंक।
करो डसावनि हरखति अंक।
अुज़जल आसतरन२ कसवाइ।
रेशम डोर गुंफ३ लरकाइ ॥३॥
४अंतर वहिर निरंतर घर को।
करीयहि तारि मारजनि५ करि को।
अतरन की खुशबोइ फैलावहु।
दास भेजि गन फूल अनावहु ॥४॥
कुंभ अंब हित६, दीजहि कोरे।
सीतल जल कीजहि सम ओरे७।
तर अूपर दे करि बहु शोरा८।
करहु भले! इह कारज तोरा ॥५॥
कहि रामो संग आप पयाना।
गुरु सनमुख, करिबे सनमाना।
मधुर प्रशादि अुठाए हाथ।
अति चित चौणप पिखनि को नाथ ॥६॥
मात गंग के सेवक संग।
मिले डरोली मनुज अुमंग।१तरफ।
२विछावंां।
३गुज़छे।
४भाई साईणदास जी बीबी रामो जी ळ कहिदे हन (देखो अंक ६)।
५सफाई।
६जल वासते घड़े।
७गड़े वाणू ठढा।
८शोरा पांी विच पाके विच पांी दा बरतन धरिआण ठढा हो जाणदा है।