Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) २७४
३३. ।बैरमखान, मथुरा बज़ध॥
३२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>३४
दोहरा: तुरक त्रास धरि जबि भजे, देखे अबदुलखान।
बडो क्रोध करि तप गयो, बोलो दुशट महान ॥१॥
सैया: बैरमखान को तीर बुलाइ कै
कोप को धारि कहो समुदाई१।
कोण न थिरो संग्राम परो
अबि भाजि कै जाहुगे कौन से थाईण?
का तुम लाज पै गाज परी२,
बहु बोलति थे मिलि कै अगुवाई३।
-कौन अरै हम संगि महां भट-,
थोरे ई सिज़खनि दीनो पलाई४ ॥२॥
तूरन तूं रन को करि जाहु
सभै भट रोकहु दै ललकारा।
बैरमखान सुने बच बान से,क्रोध भयो नहि जाइ सहारा।
लै दल को अुमडो इक वार ही,
पीसति दांतनि को बल धारा।
आइ परो गन सिज़खनि पै
थिर होति भए बड बीर जुझारा५ ॥३॥
मार तुफंगनि माची घनी,
न अरे सिख, बैरम खान भजाए।
तोमर तीरनि सोण गुलकानि
करी बरखा इकसार धवाए६।
दोनहु की दिशि ते मरि कै
भट हूर बिमान चढे मुद पाए।
देहि तजी सभि पापनि के
१सारी वारता।
२की तेरी लजा ते बिजली पै गई है?
३अज़गे तां तुसीण मिलके वध वध के बोलदे सी।
४थोड़े सिज़खां ने ही (तुहाळ) नठा दिज़ता।
५जंगजू सूरमे।
६सूरमिआण ळ भजा दिज़ता।