Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) २७८

३७. ।भीमचंद मेल हित आइआ। साहिब अजीत सिंघ जनम॥
३६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>३८
दोहरा: सुनि सतिगुर के वाक वर, क्रिपा सने रस साथ।
नमो करी तिह समोण अुठि, चलो निकट गिरनाथ ॥१॥
कबिज़त: बाज पै अरूढ करि जानि गति मूढ अुर,गुरू गुन रूढ कअु बिचारति सिधारो है।
तातकाल गयो भीमचंद कअु मिलत भयो,
जेतिक प्रसंग थिओ सकल अुचारो है।
अबि हैण क्रिपाल, नहि बज़क्रता को खाल कुछ१
चालीए अुताल, सभि कारज सुधारो है।
अनद बिलद होइ रहो है अनदपुरि
जित कित बीर ब्रिंद दल के निहारो है ॥२॥
कीजै निज मेल गन बीरनि सकेल करि,
गुरू हरखाइ कै हरख निज धारीए।
करामात साहिब सुजान कअु सु जानि मन२,
बंदना चरन करि, बिनति अुचारीए।
आपनो अशेश३ देश होति जो कलेश वेस,
गोपता विशेश बन४ नीके ही अुबारीए।
दैश को न लेश धरि मुदत हमेश रहो,
मानि अुपदेश कअु कपट निरवारीए ॥३॥
सुनि कै वकील ते सुशील को छबीलो रूप५
भूपति हठीलो हठ तागि तातकाल कअु।
भेटन सकेल करि, चाढो गज पेल करि६,
फौजन कअु मेल करि धारति अुताल कअु।
मारग पयान करि आनदपुरि कअु थान
आनि करि अुतरो महान महिपाल कअु।१हुण क्रिपालू हन, टेढताई दा खिआल ना करके भाव तूं आपणे दिल विच खोट ना करके चज़लो
(अ) (अुधर) अुलटा खिआल नहीण है।
२मन विच जाणके (कि अुह) करामात दे मालक ते दाने हन।
३सारा।
४चंगा रज़खक बणके। ।गो+पत = राजा, रज़खक॥।
५भाव गुरू जी दा।
६प्रेरके।

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