Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) २८४
गुरता गादी पर शुभ साजे ॥४९॥
दोहरा: सोलह सै संमत हुतो, नौ अूपर१ तिस जान।
चेत सुदी तिथि चौथ तबि, श्री अंगद प्रसथान२ ॥५०॥
त्रेहण कुल बाहज३ बरन, फेरू पिता सुभाग।
सभिराई माता हुती, श्री अंगद सुख बाग४ ॥५१॥
खीवी नाम सु भारजा, पतिब्रत धरम सदीव।
दासू दातू पुज़त्र दुइ, महां शकति जुत थीव ॥५२॥
संमत दादश मास खट, नौ दिन अूपर चीन।
गुरता गादी पर थिरे, अंगद गुरू प्रबीन ॥५३॥
पठहि सुनहि इतिहास को, आशा पूरन होइ।
इह दूसर पतिशाह के, करो सुनो जिम जोइ५ ॥५४॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम रासे स्री अंगद जी बैकुंठ गमन
प्रसंग बरनन नाम अशटबिंसती अंसू ॥२८॥१-१६०९।
२जोती जोत समाए।
३खज़तरी।
४सुख दे बाग तोण मुराद, सुखां दे दाते तोण है, जिवेण बाग सुंदरता दा दाता है। (अ) बाग = बाक।
वाक = बाणी। सुखदाई बाणी वाले भाव दाते।
५जिवेण जो सुणिआण है तिवेण कथन कीता है।