Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ६) २८२

३६. ।चमकौर युज़ध आरंभ॥
३५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ६ अगला अंसू>>३७
दोहरा: जाति जि सनमुख दुरग के,
सर गोली लगि घाइ।
गिरैण दड़ा दड़ तुरत ही,
एक बार समुदाइ ॥१॥
भुयंग प्रयात छंद: गुरू जी प्रचारे सुनो सिंघ मेरे।
जबै साम दामं न भेदं सुहेरे।
तबै आयुधोण पै निजं हाथ घालै१।
बनी बात सोई समैण यौणन टालै ॥२॥
पुरा२ तीर गोरीन ते मारि गेरो।
मिटैण न अराती जबै नेर हेरो।
कराचोल काढो करो खंड खंडे।
तछा मुज़छ काटो घमुंडो प्रचंडे ॥३॥
प्रभू बाक सुनि कै भए सावधाना।
करैण तान ताना तजैण चांप बाना३।
चले सरप जैसे बिधैण दोइ चारी।
तजैण प्रानको बीर बंके जुझारी ॥४॥
बरूदं न गोरी दुहूं नांहि पावैण।
पलीता पिखैण तांहि तोड़ा डभावै।
तुफंगैण छुटैण नाद होवैण घनेरे।
कड़ा काड़ माची छुटी एक बेरे ॥५॥
गिरे बीर घोरानि ते भूम जाई।
मनो कैफ४ पीके लिटे बीर खाई।
किसू मुंड फूटे किसू तुंड तूटै।
लगै बेग गोरी भुजा टांग टूटै ॥६॥
हला हज़ल बोलैण, रहे तुंड मांही५।
लगै बान देही, बचैण प्राण नांही।


१तदोण शसत्राण ते आपणा हज़थ पाअुणा चाहीए।
२पहिलोण।
३बल नाल तांके कमान विच बाण छज़डदे हन।
४शराब।
५हज़ला हज़ला मूंह विच ही रहि जाणदा है कि तीर आ देह विज़च लगदा है।

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