Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २) २८४
३४. ।संतोखसर विचोण जोगी निकलिआ॥
३३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि २ अगला अंसू>> ३५
दोहरा: श्री अरजन जी गुर भए,
परअुपकारी पीन१।
करहि अुधारन अनिक ही,
दे अुपदेश प्रबीन ॥१॥
चौपई: बचन पिता के सिमरन करे।
तीरथ सिरजन इज़छा धरे।
करो प्रिथम२ बीतो चिरकाल।
पुन इकज़त्र हुइ नीर बिसाल ॥२॥
म्रितका संग सू पूरो गयो।
खनन३ चिंन्ह सभि मिटतो भयो।
टोवा हुतो अलप४ ही करियो।
सनै सनै जलु सगलो भरियो ॥३॥
चहु दिश ते ढरि म्रितका परी।
जिस ते नांहि चिनारी५ करी।
इति अुति फिरे ब्रिंद तरु खरे।
बदरी आदि न जानिय परे ॥४॥
ब्रिज़छ सिंसपा६ जाइ सु हेरा।
खरे भए सतिगुर तिस बेरा।
तीन काल सरबज़ग महांना।
खोजति जिम अलपज़ग अजाना ॥५॥
मिटगयो चिंन्ह रहो कुछ टोवा।
निशचै भयो न, फिर फिर जोवा।
झार करीर बेलु बिसतारा।
नहि निरनै किय सकल निहारा ॥६॥
फल दिखाइ चाहति बिदतावा।
१बड़े।
२भाव श्री गुरू रामदास जी दा पहिलोण दा पुटवाइआ।
३खोदं दे।
४थोहड़ा।
५पछां।
६टाहली।