Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (ऐन १) २८५
चौपई: इम कहि नगर निहारो सारा।
पुन आए डेरो जहि डारा।
नाम थान को छीन तलाई१।
जहि अुतरे निस बसनि गुसाईण ॥२२॥
खान पान करि सैना सारी।
सुपति जथा सुख राति गुग़ारी।
लूटन बचन गुरू जो भनोण।
हो पूरन भा हम इम सुनोण ॥२३॥
बरख अठाराण सै रु इकादश२।
पंथ खालसा गमनो बरबस३।
चूरू पुरि की सुनि बड माया।
ब्रिंद खालसे को दल धाया ॥२४॥
पहुचे निकट सुनी सभि बात।
बारी खारा पियो न जाति।
जे पीवैण लागैण अतिसारा४।होति जाति मानव बीमारा ॥२५॥
पुरि के वहिर अहै जल ऐसो।
पियो न जाइ पियो रुज जैसो५।
सुनि कै हटो खालसा बली।
छूछे चलैण बात नहि भली ॥२६॥
पुरि नौहर को दल चलि आयो।
संग तुफंगैण जंग मचायो।
बरे हेल करि लूट बजारा।
लीनो दरब ब्रिंद दीनारा ॥२७॥
त्रिपत होइ तहि ते चलि आए।
मुल हय ले असवार बनाए।
केतिक भए तबहि सिरदार।
लए ग्राम गन तुरकनि मार ॥२८॥
१छीन तलाई नाम है।
२संमत १८११।
३मज़लो मज़ली।
४अतीसार, दसत।
५पीतिआण रोग जिहा हो जाणदा सी।