Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) २८८
३७. ।अपणे आप ळ हवाले कीता॥
३६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>३८
दोहरा: सुनि अदालती१ सभिनि महि,
साच लखनि के हेतु।
जुगल सिपाही सोण कहो,
गमनहु संग सुचेत ॥१॥
चौपई: अुपबन बिखै जाहु इस संग।
पिखहु तहां असवारनि ढंग।
नाअुण गाअुण बूझहु सभि भांती।
आवनि जानि कहां को, जाती२? ॥२॥
किस थल के हुइ हैण सरदार?
नांहि त लखे परहि बटपार।
माल खसोटनि किस को आए।
बैठि वहिर जिन असन मंगाए ॥३॥
जिम भाजहि नहि, सो गति कीजै।
भेद मधुर बाकनि ते लीजै।
इक तहि रहहु शीघ्र इक आवै।
जथा होइ तिम आनि सुनावै ॥४॥
करो अगारी तबहि अयाली।
चले सिपाही साथ अुताली।
खड़ग सिपर जिन धारनि कीनि।
अुपबन को गमने संग लीन ॥५॥
आवति देखि दूर ते जबै।मतीदास इम बोलो तबै।
पठो आप को आवति सोई।
आनो असन भि नांहिन जोई ॥६॥
सभिनि सुनावति सतिगुर कहो।
आवति अुही ठीक तुम लहो।
तअू जानीअहि बनो कुसूत।
आने संग दोइ जमदूत ॥७॥
१पिछले अंसू दे अंक ३४ तोण अदालत तोण मुराद कुतवाल सही हो रही है।
२किस जात दे हन।