Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति १) २८८

३८. ।क्रिपाल कटोचीए दी गुरू जी ते भीमचंद वज़ल चिठी॥
३७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति १ अगला अंसू>>३९
दोहरा: इस प्रकार श्री सतिगुरू दिवस कितेक सुजान।
बिसतारी१ कीरति जगत बिसतारी बिशिआन२ ॥१॥
निशानी छंद: भई बिदत गिरपतन महि, कीरति अुजियारी।
कलीधर बड सूरमां, करि महि धनु भारी।
जिस के अबि को समे महि, नर खिचे न कोई।
खपरे तीछनभीखना३, घरिवाइस जोई ॥२॥
छिज़प्र पनच बगराइ करि, छोरति बड दूरी४।
कोसन लगि पहुंचति चलहि बल ते भरपूरी।
सुने पुरानन के बचन, अरजन सर मारे।
त्रेते जुग श्री राम जी, धनु बिज़दा भारे ॥३॥
किधौण पितामा इनहु को, श्री हरिगोविंदं।
सुनी शाहदी५ तिनहु की, हति तुरकनि ब्रिंदं।
तिस बिधि के सर छोरिते, राखी संग सैना।
भीमचंद सोण रिस भई, किस ते मन भै ना ॥४॥
सुनि सुनि राजे गिरनि के, लिख पज़त्र पठावैण।
दोनहु दिशि को जसु कहैण, जिम कोप अुपावैण।
हुतो क्रिपाल कटोचीआ, सो चहति लरायो।
रजधानी जिस काणगड़ा, लिखि दूत पठायो ॥५॥
भीमचंद के ढिग गयो, करि बंदन बैसा।
कहति भयो राजे सुनोण६, -गुर कीनसि दैशा-।
नहि आछी मानी रिदै तुम पास पठावा।
-सतिगुर ग़ोरावर महां, डर कितहु न पावा ॥६॥
जे तुम करहु संग्राम नहि, बड अवगुन होवैण।
गुरू निकासो देश ते, तबि सुख करि सोवै।


१फैलाई।
२विशिआण दी विहु अुतारी।
३तीर तिज़खे तेभानक।
४छेती चिज़ले विच (तीर दी) बागड़ रखके खिज़चके छज़डदे हन जो बहुत दूर जाणदे हन ।पनच =
चिज़ला, सं:, पतंचका। बगराइ = तीर दी बागड़ ळ चिज़ले विच धरके खिज़चंा॥।
५अखीण डिज़ठी अुगाही।
६कटोचीए राजे ने सुणिआ है।

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