Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ३) २८९
३०. ।भाई तखत मल फेरू। भाई राअू आदि मसंद॥
२९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ३ अगला अंसू>>३१
दोहरा: गाहनि गए१ केतिक डरे,
शरन परे घिघिआइ।
खोट अलप ते२ बच रहे,
क्रिपा करी गुरराइ ॥१॥
चौपई: इक नके महि हुतो मसंद।
तिसी देश ले कार बिलद।
पाइ त्रास आनदपुरि आयो।
सभि इसत्री को बेख बनायो ॥२॥
पहिर घाघरो सिर गुंदवाइ।
मातनि पास प्रवेशो जाइ।
नाम तखतमल कहीअहि तांहि।
गुर ते धरो त्रास मन मांहि ॥३॥
तबि जीतो सुंदरी तिस हेरा।
परो शरन भै भीत बडेरा।रज़छा करनि अुचित मन जाना।
धीरज दैबे हेतु बखाना ॥४॥
ताग देह तूं अबि डर गिनती।
हम प्रभु साथ भनहि बहु बिनती।
जोण कोण करहि बचावन तेरो।
अुर सिमरहु गुर नाम बडेरो ॥५॥
इक कोशठ महि तांहि बिठाए।
गई इकंत कंत कौ पाए।
हाथ जोरि करि बिनै बखानी।
श्री प्रभु तुम ते कछू न छानी ॥६॥
रिदै दीन हुइ परै जु शरनी।
तिस की करन गोपता बरनी३।
इम अुपदेशहु अर प्रण धारहु।
१फड़न गिआण।
२थोड़ा खोट होण करके।
३रखिआ करनी कही है।