Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) २९०
३५. ।अली बखश, नानो ते इमाम बखश बज़ध॥
३४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>३६
दोहरा: अलप सिज़ख आगै रहे घेरे आनि पठान।
श्री हरिगोविंद देखि कै कोपेरिदे महान ॥१॥
सैया छंद: अली बखश सभि लशकर आगे
हतहि तफंग भयो हंकार।
सैन सकल तुरकानी अुमडी
बहु धौणसनि की अुठि धुंकार।
हाथनि गहे पताका१ आवति
फररे छोरि दिए तिस बारि।
भई जीति मनि जानति मूरख
तुरग धवाइ परे इकसार ॥२॥
श्री गुर चांप कठोर संभारा
बान पनच के बिच बगराइ२।
ऐणचि कान लगि खपरा छोरो
गयो बीर बेधति अगवाइ।
इक दुइ तीन चार लगि पंचहु
जो सनमुख तिस भेदति जाइ।
अबदुल खान खरो जहि पाछे
तहि लौ पहुचो ब्रिंदन घाइ ॥३॥
इम करि कोप प्रहारे सर खर,
गिरे सैणकरे मुल पठान।
को मारति इहु दिखीयति नांहिन
हमरे बीर कीनि गन हान।
ठटक गए भट३ अटक रहे तहि,
नहि आगे पुन कीनि पयान।तबि नानो की दिशा देखि करि
दया द्रिशटि ते हुकम बखानि ॥४॥
अली बखश! इह आगे आवति
१झंडे।
२चिज़ले दे विज़च वगाके भाव जोड़के।
३ठिठबर गए (वैरी दे) सूरमे।