Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २) ४१

३. ।तपा सिज़ख होया। सिज़खां ळ सेवा दा अुपदेश। खग सेवा॥
२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि २ अगला अंसू>> ४
दोहरा: रामदास श्री सतिगुरू, रहैण प्रेम लतान।
सज़तिनाम सिमरन करनि दे, सिज़खन कहु दान ॥१॥
चौपई: सतिसंगति निति होति बिसाला।
आवहिण, सिज़ख बनहिण नित जाला।
जहिण कहिण नगर ग्राम बड छोटे।
गुर गुर जपहिण लाख कई कोटे१ ॥२॥
सिज़खी के मारग शुभ परि हीण२।
अपरनि के मत को परहरिहीण।
मानुख जनम सफलता करिहीण।
गुर महिमा शरधा ते धरिहीण ॥३॥
दुशट देखि करि दुखति बिसाले।
बरखा जलहि जवासो जाले३।
सहि नहिण सकहिण कमूढ कुभागे।
मनहुण चंद्रिका बिरहनि लागे४ ॥४॥
सिज़खन की अस रीति नवीन।
एक तपे ने देखनि कीन।तरक करन को अुमगो रहै५।
इहु का कीनि? नरनि सोण कहै ॥५॥
बूझन को करि प्रीति बडेरी६।
आइ सभा सतिगुर की हेरी।
बंदन करि समीप तबि थिरो।
बैठाइव गुर आदर करो ॥६॥
पुन बूझो कहि दुशटन दवनू।
कारन कवन आप आगवनू७?


१कई क्रोड़।
२पैणदे हन।
३बरखा दे जल नाल (जिवेण) सारा जवाहां सड़ जाणदा है।
४जिवेण चानंी विछोड़े वाली ळ (दुखदाई) लगदी है।
५अुज़छलदा रहिणदा है।
६बड़ी प्रीत नाल (लोगां) ळ पुछणा करदा है।
७आअुणे दा कारन की है?

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