Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ११) २९३
४२. ।मेहेण दी घाल॥
४१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ११ अगला अंसू>>४३
दोहरा: रहे ग्राम धमधान ढिग,नित अखेर ब्रिति जाइ।
करति निहाल अनेक के,
आवहि नर समुदाइ ॥१॥
चौपई: मात नानकी साथ रहति है।
श्री गुजरी निज नुखा सहित है।
बहुत दिवस डेरा तहि रहो।
मंगल नित अनद गुर लहो ॥२॥
नद लाल सोहने को नद।
गुर ग्रिह सेवा लगो बिलद।
मेहां+ नाम तिसी को अहै।
सेवा अधिक सेवतो रहै ॥३॥
तहि जल हुतो दूर ते लावनि।
सिर धरि ढोवति चहि मन पावन१।
भगति भाअु मैण रंगो मन को।
नहि सुख ठानति है कबि तन को ॥४॥
प्रेम बिखै सेवति सतिगुर को।
लागी लगन इसी बिधि अुर को।
किस के साथ न बोलै कबिहूं।
जितो खरच जल आनहि सबिहूं ॥५॥
वाहिगुरू सिमरन अुर करता।
भाग जगे शरधा गुर धरता।
खान पान किछु सहिजे मिले।
खाइ अलप सेवै गुर भले ॥६॥
भोजन केर साद नहि धरै।
मिलै जथा सो खैबो करै।
गागर को सिर पर धरि लावै।
+जापदा है कवी जी ने ओथे आप फिर के लोकाण तोणप्रसंग सुणके ते सोधके लिखे हन। साखी पोथी
विच नाम फेरू है, जिसळ सोधिआ है।
१पविज़त्र मन वाला।