Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति १) २९३३९. ।केसरी चंद ते पंमा अनदपुर आए॥
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दोहरा: भीमचंद बिच सभा के, दोनहु पठे बुलाइ।
एक केसरी चंद को, पंमा प्रोहत आइ।
सैया छंद: दोनहु कहि बिठाइ समुझायहु
नीति रीति नीके तुम चीन।
पहुंचहु सतिगुर के समीप चलि
नमो करहु कर जोरि अधीन।
मम दिशि ते धरि चरनिन पर कर१
बिनती भले सुनाइ प्रबीन।
भनहु प्रसंसा परम प्रसंन करि
जाचहु वसतु अजब इक तीन२ ॥२॥
सुमति सहित चातुरता रचि बहु
जोण कोण लीजै कीजै काज।
-पुज़त्र हमारो अपनो समझहु
हान लाभ की समसर लाज।
इक घर लखहु रखहु निज करुना
पुज़त्र बाह बहु मिलै समाज।
तहां आबरू करहु वधावनि,
सभि राजे जानहि सिरताज- ॥३॥
इज़तादिक बहु करहु अुचारनि,
रु देखहु जे कारज है न।
पुन लालच की बात सुनावहु
-आवहि बाह जबहिसुखचैन३।
चारहु वसतु शीघ्र पहुचावहि
फेर न राखहिगे निज ऐन।
चतर हग़ार रजतपन इन संग
पूजा करहि आप की दैन- ॥४॥
इम समुझाइ कहो अबि गमनहु
१चरनां ते हज़थ रखके।
२इक ते तिंन = चार।
३जदोण विआह के आवाणगे सुख अनद नाल।