Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 286 of 626 from Volume 1

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ३०१

सभि को धीरज कहि दई, मुझि बडो अलबा ॥१८॥
नहिण चिंता चित मैण करहु, पद अूच मिलो है।
मुदित करो परवार को, पुन पंथ चलो है।
सनै सनै गमनो तबहि, मग अुलणघो सारे।
गयो हरी पुर के निकट, गिर रुचिर निहारे ॥१९॥
सुंदर बन अुपबन जहां, हरिआवल होए।
हरित पज़त्र फल फूलगन, सावन मल जोए।
बिमल नीर गन बापका१, गन रहैण बिहंगा।
नर अवकीरन२ जहिणकहां, धर बेख सुरंगा ॥२०॥
सुंदर सरबंगन बिखै, तरुनी गन हेरी३।
आणख कमल की पांखरी, चलचाल घनेरी४।
बिधु बदनी५, शुक्रिशोदरा६, सुठ शाम सु केसी७।
गजगमनी, सुर कोकला, कट केहरि जैसी८ ॥२१॥
कंठ कपोती९ सुंदरी, सम ओठ प्रवाला१०।
जोगिन११ के धीरज हरैण, ऐसी गन बाला।
आन देश अवनी बिखै, तिस देश समाना।
अबला कितहूं होति नहिण, अस रुचिर महाना ॥२२॥
रजधानी तिह न्रिपत की, नर गन धनवाना।
पिखि सुंदरता अधिक ही, पुन निकट पयाना।
रोदन को बड शबद है, सुनि श्रोन मझारा।
लोक सैणकरे मिलि रहे, करिण हाहाकारा ॥२३॥
बूझो इक नर का भयो, किअुण रोदन ठानैण।
नगर दुखी सगरो अहै, अुर शोक महांनै।


१पहाड़ी बावलीआण, बावड़ीआण।
२फैले होए हन।
३सरब अंगां विखे सुंदर इसत्रीआण समूह देखीआण।
४बहुत चंचल। ।संस: चलचाल॥।
५चंद्रमां वत मुख वालीआण।
६पतले लक वालीआण।
७सुहणे काले वालां वालीआण।
८हाथी जैसी चाल वालीआण, अवाग़ कोइलां वरगी, लकोण शेर जैसीआण (भाव पतले लक)।९गरदन कबूतरी वालीआण।
१०बुल लाल गुलीआण वत।
११जोगीआण दे।

Displaying Page 286 of 626 from Volume 1