Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति १) २९९४०. ।केसरी चंद ते पंमे दा निरादर॥
३९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति १ अगला अंसू>>४१
दोहरा: -वसतुनि को भारा१ हमहि, देनि कहो मतिमंद।
बिवहारी जिम बनिक है, जानहि तिनहु मनिद- ॥१॥
सैया छंद: फरके अधर द्रिगनि ते तरजे
कहां कहो इह, रे मति मंद!
चतर हग़ार देहि इह कैसो,
तुम का हम को लखो बिलद२।
सिज़ख नहीण? अंम्रित नहि* लीनिसि,
नहीण भावना गुरू मुकंद।
रईयत नहीण बने तुम अबि लौ
जबि लौ पंथ३ मचाइ न दुंद ॥२॥
जोर न परो गिरन पर हमरो
जिस ते दंड देहु धन आनि।
आशै कौन देनि को जानोण
जिस ते लेहु, सु करहु बखान+।
लखि प्रभु को रु रिस बहु धारी
हहिरति अुर मैण डर को मानि।
कहो केसरी चंद बदन पुन
आप कोप अुपजावनि ठानि ॥३॥
भीमचंद न्रिप जथा बखानी
तिम ही मानी कीनि बखानि४।
देनिहार सो, लेनिहार तुम,हम का जानहि ए का जानि५!
तअू अुचित है देनि तुमहु को
जोण कोण देहु, सु लेहु महान।
१किराइआ, भाड़ा।
२तुसीण साळ किहड़े दाओण वडा मंनिआण है (अगे वेरवा करके पुज़छदे हन:-)।
*कलम दी अुकाई जापदी है गुरबिलास १० पातशाही विच पाहुल लिखी है ते इह वाक राजे
दे मुज़खोण लिखे हन यथा-मैण नहीण सिज़ख न पाहुल पाई।
३साडा पंथ।
+इस विच सिज़ध कर दिज़ता है कि जो तुसीण भेटा देणी कही है अुह बनीआण समझ के भाड़ा देणदे हो।
४(असां भीम चंद दा कहिआ) मंन के आखी है।
५असीण की जाणदे हां ते एह (पंमां) की जाणदा है।