Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६)२९९
३६. ।करम चंद फड़के छज़डिआ॥
३५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>३७
दोहरा: दुंदभि बजे अनेक ही, दस सहज़स्र बड सैन।
अुमडी आवति जंग को, बिधीचंद पिखि नैन ॥१॥
निशानी छंद: पिखो पिरागा निकट निज, तिस को समुझायो।
करहु शीघ्रता जाहु अबि, गुरु के ढिग धायो।
१आगै आवति बाहनी, सभि ग़ोर लगाए।
पाछै अबदुल खान है, फररे छुटवाए ॥२॥
जंग अंत को चहति है, प्रेरे सभि काला२।
धूर अुडो पूरो गगन, जनु घड़ा बिसाला-।
सुधि दीजै सतिगुरू को -माचहि घमसाना।
जोण रजाइ हुइ रावरी मारहि तुरकाना ॥३॥
सुनति पिरागा तबि गयो, लै दसक सअूरा।
जिस थल महि श्री सतिगुरू, हरिगोबिंद सूरा।
हाथ बंदि बंदन करी, सभि दशा सुनाई।
अबदलुखां अबि आप ही, आयहु अगुवाई ॥४॥
चढी फौज सम घटा के, आवति अुमडाई।तागहु तीर समीर सम, जिस ते मिटि जाई।
सुनि करि श्री गुरु नीर सोण, कर चरन पखारे।
करो सुचेता सकल बिधि, मुछ शमस३ सुधारे ॥५॥
पहिरे बसत्र नवीन सभि, कली बड शोभे।
जिगा बधी हीरे बडे, जिन पिखि मन लोभे।
चंद्रहास४ चौरा रुचिर, लेकरि गर पायो।
तरकश जरो जवाहरनि, ग़ाहर दमकायो ॥६॥
तीछन भीछन तीर गन, ईछन५ ते हेरे।
खपरे सरप समान जे, भरि लीनि घनेरे।
गर मैण पाइ निखंग अस६, पुन सिपर संभारी।
१ते आखे कि....।
२मौत ने।
३दाड़्हा।
४तलवार।
५नेत्राण नाल।
६ऐसा भज़था।