Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) ३००
४३. ।श्री तेग बहादर जी दी गंभीरता॥
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दोहरा: थिरहि गुरू सभि सभा महि, शबद सुनहि बिच राग।
जिन ते मन पावन बनैण, अुपजै प्रभु अनुराग ॥१॥
चौपई: भगति, गान, बैराग, बिबेक।
निगुन सगुन की आतम टेक१।
इज़तादिक चरचा संग भाने।
सुनति जोध सतिगुरू बखाने ॥२॥
रूपे आदि सिज़ख बहु सुनैण।
गुर अुपदेश रिदै पुन गुनैण।
सतिसंगति की पंगति होति।
ब्रहमगान को रिदै अुदोति ॥३॥
मुकति अुचित नर भए अनेक।
गुर प्रताप ते पाइ बिबेक।
बिती सरद२, हिम रितु३ पुन आई।
पारा परहि जगत अधिकाई ॥४॥कीरतपुरि ही सतिगुर बासे।
भए शांति चित सुजसु प्रकाशे।
शज़त्र तुरक लाखहु रण मारे।
अरे आइ सगरे सो हारे ॥५॥
श्री हरिराइ संग बहु नेहू।
म्रिदुल बाक ते करति अछेहू।
निस दिन निज समीप ही राखैण।
प्रिथक होन को कबहु न काणखैण ॥६॥
सदन थिरहि तौ बैठहि तीर।
जे करि चढहि कबहि गुर धीर।
हय चढाइ करि संग लिजावैण।
सिवका चढैण त साथ चढावैण ॥७॥
सतुद्रव कूल सैल को जाइ।
१निरगुण ते सरगुण दा मूल इक आतमां है।
२सरद रितु = अज़सू कज़तक दे महीने।
३हिम रितु = मज़घर पोह।