Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २) ३०२

३६. ।जोगी ळ अुपदेश दे मुकत कीता॥
३५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि २ अगला अंसू>> ३७
दोहरा: सुनि जोगी बिसमै भयो, बानी सुधा समान।
पुनहि प्रशन कीनसि१ भले, निरनै करन महांन ॥१॥
चौपई: कौन बाद करि ब्रहम सिज़ध किय?
जिस ते सरब प्रपंच द्रिशटि थिय।
कंचन भूखन को द्रिशटांति।
वाद प्रणाम२ भयो वज़खात ॥२॥
हेमु प्रणामो निज अकार३।
कंकन कुंडलादि लकार४।
ब्रहम प्रणंम५* होति भातैसे**।
जगत चराचर अुपजो ऐसे ॥३॥
जिस माया के अपु बतावौ।
सो झूठी कै साच जनावौ।
ब्रहम सरूप बिलोको कैसे।
-सूखम ते सूखम- कहि ऐसे६ ॥४॥
महां पुरख जोगी ते सुनि कै।
अुज़तर दीनसि सतिगुरु गुनि कै७।
विवरत वादि८ इहु हम ने कहो।
द्रिश प्रपंच९ ब्रहमु ते लहो ॥५॥
जथा रजू ते स्रप अुपजंता।
भै आदिक ते कंप अुठता।


१अुसने प्रशन कीता।
२प्रणामवाद = रूप बदलन वाला।
३सोने ने बदलिआ आपणा रूप।
४गहिंिआण विच।
५बदलं वाला।
*पा:-प्रणाम।
**पा:-जैसे। ऐसे।
६ऐसे कहिदे हन कि सूखम ते सूखम है ब्रहम।
७विचारके।
८असां इह विवरत वाद किहा है, अरथात ब्रहम सज़त है, अुस तोण जगत माया करके भासदा है ते
गान नाल ब्रहम बिनां होर कुछ नहीण भासदा, जैसे रसी तोण सज़प।
९भाव-दिज़सदा जगत।
पा:-अहि।

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